टोक्यो पैरालंपिक खेलों में सोमवार को सुमित ने देश को दूसरा गोल्ड मैडल दिलाया। सुमित ने जैवलिन की एफ64 कैटेगरी में वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ मैडल अपने नाम किया।
उन्होंने फाइनल्स में 68.55 मीटर के बेस्ट थ्रो के साथ मेडल जीता। हमेशा सुनते आए हैं कि दिव्यांगता(disability) शरीर में तो हो सकती है, लेकिन जो लोग इसे दिल और दिमाग पर हावी नहीं होने देते वही सफलता पाते हैं और दुनिया की मिसाल बन जाते हैं। और यह बात जैवलिन थ्रोअर सुमित अंतिल ने पैरालंपिक में गोल्ड जीतकर साबित कर दिया है।
सड़क हादसे में गंवाया था एक पैर :-
सुमित अंतिल का जन्म 6 जुलाई 1998 को हरियाणा राज्य के सोनीपत जिले के खेवड़ा गाँव में हुआ था। सुमित चार भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। जब वे 12वीं कक्षा में थे तो शाम को अपनी कॉमर्स की ट्यूशन लेकर घर वापिस आ रहे थे, तभी उनके बाइक की टक्कर एक ट्रैक्टर से हो गयी। इसी हादसे के बाद उन्होंने 17 साल की उम्र में अपना बायाँ पैर खो दिया और इलाज कराने के बाद उन्हें नकली पैर लगाया गया। इसके बाद भी उन्होंने अपनी परिस्थिति से हार नहीं मानी और आज एक अच्छा खिलाड़ी बनकर सफलता हासिल की और देश का मान रखा। उन्होंने भारत के सभी देशवासियों का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया।
उनके इस सफलता के सफर में उनकी माँ ने हमेशा उनका साथ दिया और उनको हर कदम पर प्रेरित किया,
उनके दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी उनका हौसला बढ़ाया।
गोल्ड मैडल जीतने के बाद सुमित अंतिल ने कहा - " यह मेरा पहला पैरालंपिक था और प्रतिस्पर्धा कड़ी होने के कारण मैं थोड़ा नर्वस था। मैं सोच रहा था कि 70 मीटर से अधिक का थ्रो जाएगा। शायद मैं 75 मीटर भी कर सकता था। यह मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं था। लेकिन विश्व रिकॉर्ड तोड़ कर मैं खुश हूँ।"
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