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Writer's pictureSaanvi Shekhawat

मायावती बोलीं- राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव कभी स्वीकार नहीं करूंगी।

मायावती बोलीं- राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव कभी स्वीकार नहीं करूंगी, बीजपी-RSS ने दुष्प्रचार करके लिए मेरे समर्थकों के वोट


यूपी विधानसभा चुनाव खत्म होने के साथ ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने रविवार को भाजपा और सपा पर एक साथ हमला बोला। उन्होंने कहा कि वह किसी भी पार्टी की ओर से मिले राष्ट्रपति पद के प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं करेंगी। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा और आरएसएस ने उनके समर्थकों को गुमराह करने के लिए यह झूठा प्रचार किया था कि अगर उत्तर प्रदेश विधानसभा में भाजपा को जीतने दिया गया, तो उनकी बहन जी को राष्ट्रपति बनाया जाएगा।


प्रदेश कार्यालय में बैठक के बाद जारी बयान में मायावती ने कहा कि चुनाव नतीजो से साफ हुआ कि इस चुनाव में जब बसपा से जुड़ा मुस्लिम समाज का वोट एकतरफा सपा में जाते दिखा, जबकि हिन्दू समाज ने भाजपा सरकार की नीतियों और कार्यशैली से दुखी होते हुए भी यह सोचकर अपना अधिकांश वोट भाजपा को दे दिया कि कहीं यहां फिर से सपा का गुंडा, माफिया, आतंकी, हल्ला बोल और भ्रष्ट राज वापस ना आ जाए। उन्होंने कहा कि इससे सपा तो सत्ता में नहीं आ सकी बल्कि भाजपा सत्ता में जरूर वापस आ गई।इसका काफी जबरदस्त राजनीतिक नुकसान बसपा को हुआ है, जिसके लिए सपा और अधिकांश मुस्लिम समाज पूरे तौर से जिम्मेवार व कसूरवार भी है।


मायावती ने कहा कि हमेशा की तरह मुस्लिम समाज के लोग सपा को वोट देकर काफी ज्यादा पछता रहे हैं और इनकी इसी कमजोरी का सपा यूपी में बार-बार फायदा भी उठा रही है, जिसे रोकने के लिए अब हमें इन भटके और दिशाहीन हुए लोगों से कतई भी मुँह नहीं मोड़ना है बल्कि इनको सपा के शिकंजे से बाहर निकाल कर अपनी पार्टी में वापस लाने का भी पूरा-पूरा प्रयास करना है। अन्य सभी हिन्दू समाज को भी अब फिर से बसपा में 2007 की तरह ही जोड़ना है। बसपा अध्यक्ष ने कहा कि दलितों में भी मेरी जाति को छोड़कर जो अन्य दलित समाज की जातियों के लोग हैं, उन्हें भी इन पार्टियों के हिन्दुत्व से बाहर निकाल कर बसपा में जोड़ना है।


मायावती ने कहा, "भाजपा ने इस चुनाव में एक सोची-समझी रणनीति और साजिश के तहत दुष्प्रचार करवाया है कि यूपी मे बसपा की सरकार बनने पर हम आपकी बहनजी को देश का राष्ट्रपति बनवा देंगे। इसीलिए आपको बीजेपी को सत्ता में आने देना चाहिए, जबकि मेरे लिए देश का राष्ट्रपति बनना तो बहुत दूर की बात है। बल्कि इस बारे में मैं सपने में भी कुछ सोच नहीं सकती हूं। इनको यह भी मालूम है कि बहुत पहले ही कांशीराम जी ने इनका यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था और मैं तो उनके पदचिह्नों पर चलने वाली उनकी मजबूत शिष्या हूं।"


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