जैसे कि बलूचिस्तान पिछले कई वर्षों से सुर्खियां बटोरते आ रहा है, चाहे बलूचिस्तान में वहां के नागरिकों और बलूचिस्तान आर्मी के द्वारा मोहम्मद अली जिन्ना की मूर्ति को बम विस्फोट करके तबाह कर देना हो या फिर समय-समय पर मनुष्यों द्वारा पाकिस्तान से अलग देश बनाने की मांग हो। ये खबरों में बना ही रहता है।पूर्व में जैसे पूर्वी-पाकिस्तान को 1971 में मुक्ति-वाहिनी और भारतीय सेना के द्वारा पाकिस्तान से तोड़कर नया देश बांग्लादेश बना दिया गया था, वैसे ही यह कहना गलत नहीं होगा कि बलूचिस्तान भी भविष्य में पृथक हो जाएगा।
पिछले 1 सप्ताह से बलूचियों में चीनियों एवं पाकिस्तानी सरकार के लिए क्रोध, आग की तरह फैल रहा है सड़कों पर बलूचिस्तान के युवा उतर पड़े हैं और व्यापक तौर पर आंदोलन कर रहे हैं।
जैसे कि चीन और पाकिस्तान की परियोजना CPEC (चाइना- पाकिस्तान इकोनॉमी कॉरिडोर) बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट में कार्यशील है। CPEC (सीपेक) चीन के शिनजियांग प्रांत के ग्वादर पोर्ट के बीच में बन रहा है। यह आंदोलन बलूचियों के ऊपर अत्याचार की वजह से व्यापक प्रदर्शन का रूप ले रहा है क्योंकि वहां की आम जनता को जीवन का मूलभूत आधार बिजली पानी तक मिलना दूभर हो गया है वहां के मछुआरों को मछलियां पकड़ने तक की इजाजत नहीं है और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। जबकि बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है पर बलूचिस्तान पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सिर्फ 8% का योगदान करता है।
इस बार का आंदोलन व्यापक इसलिए भी है क्योंकि वहां की युवा नागरिक बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। क्योंकि उन्हें अपने ही देश में मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है, जबकि वहां काम कर रहे चीनियों को सारी सुविधाएं/संसाधन प्रदान की जा रही है। बलूचिस्तान के लोगों को इस सीपेक प्रयोजना से कोई फायदा नहीं मिल रहा है इस परियोजना का 91% राजस्व चीन को जा रहा। वहीं बाकी पाकिस्तान सरकार ले रही है और इसी सौतेले व्यवहार की वजह से वहां की जनता कटा हुआ महसूस कर रही है इन्हीं कारणों की वजह से यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तानी गृह युद्ध की ओर बढ़ता जा रहा है जो पाकिस्तान के भविष्य के लिए भी अच्छा संदेश नहीं है।
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