अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इस साल अगस्त में अफगानिस्तान को छोड़ने का फैसले को सही बताया है| अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अशरफ गनी अचानक देश से भाग निकले थे, बाद में उनकी प्रतिक्रिया आई थी कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह काबुल को तबाही से बचाना चाहते थे| अशरफ गनी ने बताया कि जब वह 15 अगस्त की सुबह उठे तो इस बात का अंदाजा नहीं था कि अफगानिस्तान में यह उनका आखरी दिन होगा| मंगलवार को टुडे प्रोग्राम में गेस्ट एडिटर रहे ब्रिटेन के पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल सर निक कार्टर से बात करते हुए अशरफ गनी ने कहा कि जब उनका विमान काबुल से उड़ा तब उन्हें एहसास हुआ कि वह देश को छोड़ कर जा रहे हैं| उस वक्त अफगानिस्तान को छोड़ने की वजह से अशरफ गनी को कई आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था| आपको बता दें कि अभी अशरफ गनी यूएई में है|
अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के अफगानिस्तान छोड़ने की आखिरी घंटे कैसे रहे?
इंटरव्यू के दौरान अशरफ गनी ने बताया दिन की शुरुआत मे तालिबान के लड़ाकों ने सहमति जताई थी कि वह काबुल में नहीं दाखिल होंगे| उन्होंने कहा लेकिन 2 घंटे बाद स्थिति बिल्कुल अलग थी| उन्होंने आगे बताया काबुल में दो तरफ से तालिबान के दो अलग-अलग गुट काबुल के बॉर्डर पर थे और उन दोनों के बीच बड़े पैमाने पर जंग होने अंदेशा था| अगर ऐसा होता तो 50 लाख की आबादी वाले शहर काबुल की शक्ल सूरत बदल जाती और आम लोगों को इससे काफी नुकसान पहुंचता| अशरफ गनी के मुताबिक वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अपनी पत्नी के कहने पर काबुल छोड़ने के लिए तैयार हुए| इसके बाद वह इंतजार कर रहे थे की एक कार आएगी और उन्हें रक्षा मंत्रालय ले जाएगी| लेकिन वह कार नहीं आई उसके कुछ देर बाद राष्ट्रपति के सुरक्षा सलाहकार डरे हुए आए और कहां अगर राष्ट्रपति ने कोई स्टैंड लिया तो सब की मौत तय है| अशरफ गनी ने बताया उन्होंने मुझे सोचने के लिए केवल 2 मिनट का वक्त दिया था| मेरा आदेश था कि जरूरत पड़ने पर खोस्त के लिए निकलने की तैयारी करेंगे| लेकिन उन्होंने बताया कि खोस्त पर अब तालिबान का कब्जा है और जलालाबाद भी उनके लड़ाकों के कब्जे में जा चुका है| मुझे नहीं पता था कि हम कहां जाएंगे जब हमारा वीमान हवा में उड़ा तब जाकर यह एहसास हुआ कि हम देश छोड़ रहे हैं| यह वाकई में आनन-फानन में हो गया|
अशरफ गनी के अफगानिस्तान छोड़कर जाने के बाद उनकी खूब आलोचना की गई| यहां तक कि अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति "अमीरुल्ला सालहे" ने भी उनकी आलोचना की और उनके इस कदम को अपमानजनक बताया था| अशरफ गनी ने कहा वह कह रहे थे कि अगर मैं कोई कदम उठाता तो सब मारे जाते| उनमें मेरी रक्षा करने की क्षमता नहीं थी| राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ हमदुल्लाह, डॉ मोहिब बुरी तरह से डरे हुए थे| अशरफ गनी ने इससे इनकार किया कि वह पैसे लेकर देश से भागे हैं| उन्होंने कहा कि उनके नाम पर लगा आरोप हटाने के लिए वह इस मामले में अंतरराष्ट्रीय जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं| उन्होंने कहा- मैं स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं कि मैं कोई भी पैसा लेकर अफगानिस्तान से बाहर नहीं गया मैं कैसा जीवन जीता हूं यह सभी जानते हैं| मैं पैसों का क्या करूंगा?
2021 का सबसे बड़ा तख्तापलट,अफगानिस्तान पर तालिबान बादशाहत|
अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा 1 दिन में पूरा नहीं हुआ| लेकिन कई लोगो का कहना है कि 15 अगस्त को अशरफ गनी के अचानक अफगानिस्तान छोड़ कर चले जाने से सुनियोजित तरीके से सत्ता हस्तांतरण के लिए दोनों पक्षों से जो समझौता हो सकता था वह नहीं हो सका| हालांकि समझौता होने या ना होने से कोई ज्यादा असर नहीं आता| दोनों ही सूरतो में सत्ता तालिबान के हाथों में जाना अब तय हो चुकी थी| लेकिन "मौत तक लड़ता रहूंगा" कहने वाले अशरफ गनी के अचानक देश छोड़ने से देश में अव्यवस्था का माहौल पैदा हो गया था| 15 अगस्त को अफगानिस्तान छोड़ने से अधिक उन्हें उससे पहले कुछ ना करने के लिए दोषी करार दिया जा रहा है|
यह बात सही है कि समझौते के मामले में अमेरिकियों ने उनके हाथ कमजोर किए| लेकिन उन्होंने भी मजबूती नहीं दिखाई| अब उन्हें राजनेता के रूप में कम और ऐसे लीडर के रूप में देखा जा रहा है जो न केवल अमेरिकी राजनीति को और न ही तेजी से बदलती उस जमीनी हकीकत को भाप पाए जिसके बारे में तालिबान को खुद भी अंदाजा नहीं था| बात करें अशरफ गनी के दिए हुए बयानों की तो अभी के दिए बयानों पर चर्चा होगी और इसे देर से आया बयान कहकर खारिज कर दिया जाएगा|
अशरफ गनी ने माना की गलतियां हुई है| लेकिन उन्हें उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय धैर्य से काम लेगा| उन्होंने आगे तालिबान के साथ अमेरिका के समझौते का जिक्र करते हुए कहा 15 अगस्त को जो कुछ भी हुआ उसके नींव इसी समझौते ने डाली थी| यह समझौता पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन के दौरान हुआ था| उन्होंने कहा शांति प्रक्रिया की जगह हमें पीछे हटने की प्रक्रिया मिली| उन्होंने कहा यह वह समझौता था जिसने हमें खत्म कर दिया| तालिबान और अमेरिका के बीच हुए समझौते के अनुसार अमेरिका इस बात पर राजी हो गया था कि अफगानिस्तान में मौजूद अपने सभी सैनिक और नाटो देश के सभी सैनिक को वहां से बाहर निकालेगा| साथ ही युद्धबंदियों की अदला-बदली को लेकर भी सहमति बनी| उसके बाद तालिबान चर्चा में अफगान सरकार को शामिल करने पर तैयार हुआ और इस चर्चा का कोई नतीजा नहीं निकला| इसके बाद साल 2021 की गर्मियों में अमेरिका के नए राष्ट्रपति "जो बिडेन" ने कहा कि 11 सितंबर तक अफगानिस्तान में मौजूद सभी अमेरिकी सैनिकों को आपस बुला लेंगे| इस वक्त से तालिबान ने देश में अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए थे और उसके लड़के एक के बाद एक शहरों को अपने कब्जे में लेते जा रहे थे|
अशरफ गनी कहते हैं आखिर में जो हुआ वह हिंसक विद्रोह था| वह न तो राजनीतिक समझौता था और ना ही राजनीतिक प्रक्रिया| जिसमें लोगों को शामिल किया गया हो| जिस दिन अशरफ गनी ने काबुल छोड़ा उसी दिन काबुल पर तालिबान ने कब्जा कर लिया| तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान को मिल रही विदेशी मदद बंद हो गई और अफगान सरकार के सभी एेसेट फ्रीज कर दिए गए और देश पर आर्थिक और मानवीय संकट मंडराने लगा| सत्ता से हटने के 3 महीने बाद अशरफ गनी ने कहा कि जो कुछ हुआ और जिन कारणों से काबुल उनके हाथ से निकल गया| वह उसमें कुछ की जिम्मेदारी लेने को तैयार है| उन्होंने कहा वह इस बात की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर भरोसा किया| हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि मेरे जीवन भर का काम तबाह हो गया| मेरे मूल को कत्ल कर दिया गया| मुझे बलि का बकरा बना दिया गया|
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