भारत एक एसा देश जहां विभिन्न प्रकार की जातियों के लोग रहते हैं। सभी जातियों के अपने नियम, पर्व, और अपनी परंपरा है। कुछ लोग एक दूसरे के पर्व में शामिल होते हैं, तथा कुछ लोग नहीं होते हैं। खासकर जब यह बात हिंदू और मुस्लिम में आ जाए, तो हमारे देश में लोग दो गुटों में बट जाते हैं हिंदू धर्म को मानने वाले लोग मुस्लिम धर्म का कोई पर्व नहीं मनाते तथा मुस्लिम धर्म के मानने वाले लोग हिंदू कोई पर्व नहीं मनाते। मगर हमारे देश में एक ऐसा भी स्थान है जहां लोग जाति को भूलकर एक साथ मिलकर होली का त्यौहार मनाते हैं चाहे वह हिंदू हो मुस्लिम हो सिख हो या इसाई।
यह जगह उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के देवा शरीफ में है, हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली गंगा जमुनी तहजीब के साथ आपसी भाई चारे की एक बड़ी मिसाल पेश करती है। यहां पर असल मायने में लोग भेदभाव भूलकर होली के एक रंग में रंगते हैं।
हाजी वारिस अली शाह की दरगाह में देश भर से विभिन्न प्रकार की जातियों के लोग होली मनाने के लिए आते हैं। यह दरगाह अनेकता में एकता के प्रतीक को दर्शाती है। कल देशभर में होली के शुभ अवसर में दूर दूर से लोगों ने दरगाह में आकर होली का त्यौहार एक साथ मनाया।
हाजी वारिस अली शाह की दरगाह का निर्माण सालों पहले इनके हिंदू मित्र ने कराया था उनका नाम राजा पंचम सिंह था। और तभी से यह दरगाह हिंदू और मुस्लिम को एक साथ जोड़ती है तथा दोनों के बीच के भेदभाव को खत्म करती है।
30 साल से यहां पर होली खेलने आ रहे सरदार परमजीत सिंह ने बताया कि “जो मैं 30 साल पहले यहां पर होली खेलने आया तो मानो होली का रंग मेरे ऊपर सातों जन्म के लिए चढ़ गया और यह रंग कभी भी उतरने वाला नहीं है”। उन्होंने कहा कि “मैं यहां हर साल आता हूं क्योंकि देश भर की यह इकलौती एसी दरगाह है, जहां हिंदुओं के सारे पर्व को मनाया जाता है और होली तो ऐसी मनाई जाती है कि एक बार जो आ जाए वह इसे कभी भूल ना पाए”।
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