क्या भगवान को वेरिफिकेशन के लिए तलब किया जा सकता है! वैसे तो ये संभव नहीं है लेकिन एक अदालती फरमान इन दिनों चर्चा में है। मद्रास हाई कोर्ट ने तिरुपुर जिले के एक मंदिर के अधिकारियों को 'मूलवर' (देवता) की मूर्ति को वेरिफिकेशन के लिये पेश करने का आदेश देने पर एक निचली अदालत की खिंचाई की है। न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या अदालत भगवान को निरीक्षण के लिए पेश करने का आदेश दे सकती है।
पूरा मामला:
'मूलवर' (देवता) की यह मूर्ति चोरी हो गई थी और बाद में उसका पता लगाकर अनुष्ठानों और 'अगम' नियमों का पालन कर उसे पुन: स्थापित किया गया था। न्यायमूर्ति आर सुरेश कुमार ने कहा कि ऐसा करने की बजाए निचली अदालत के न्यायाधीश इस मूर्ति की सत्यता का निरीक्षण करने के लिए एक ऐडवोकेट कमिशनर नियुक्त कर सकते थे और अपने रिपोर्ट दर्ज कर सकते थे। न्यायाधीश ने मूर्ति चोरी के मामले की सुनवाई कर रही कुंभकोणम की निचली अदालत पर यह टिप्पणी की जिसने अधिकारियों को तिरुपुर जिले के सिविरिपलयम में परमशिवन स्वामी मंदिर से संबंधित उक्त मूर्ति को पेश करने का आदेश दिया था।
चोरी हो गई थी मूर्ति
न्यायमूर्ति सुरेश ने उस याचिका पर यह अंतरिम आदेश दिया जिसमे कुंभकोणम अदालत के मूर्ति को पेश करने के निर्देश के अनुपालन में अधिकारियों द्वारा मूर्ति को मंदिर से फिर से हटाए जाने के संभावित कदम को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता के अनुसार, प्राचीन मंदिर में मूर्ति चोरी हो गई थी, बाद में पुलिस ने उसे बरामद किया और संबंधित अदालत- कुंभकोणम, में मूर्ति चोरी के मामलों से निपटने वाली विशेष अदालत- के समक्ष पेश किया। इसके बाद, इसे मंदिर के अधिकारियों को सौंप दिया गया और मंदिर में फिर से स्थापित कर दिया गया। बाद में कुंभाभिषेक भी किया गया।
अदालत बोली- हमारे सामने पेश करो मूर्ति
अब ग्रामीणों समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा इसकी पूजा की जाती है। कुंभकोणम में मूर्ति चोरी के मामले देख रहे न्यायिक अधिकारी ने छह जनवरी को मूर्ति यानी 'मूलवर' को निरीक्षण के लिये पेश करने और जांच पूरी करने का निर्देश दिया था। मंदिर के कार्यकारी अधिकारी जब अदालत में पेश करने के लिये प्रतिमा को हटाने लगे तो लोगों ने इसका विरोध किया और एक रिटन याचिका उच्च न्यायालय में दायर की। न्यायाधीश ने बृहस्पतिवार को अपने आदेश में कहा कि मूर्ति को हटाने और संबंधित अदालत में पेश करने की आवश्यकता नहीं है, इसका कारण यह है कि, भक्तों की मान्यता के अनुसार, यह भगवान है।
हाईकोर्ट ने कहा- भगवान को अदालत नहीं बुला सकते
भगवान को न्यायालय द्वारा केवल निरीक्षण उद्देश्यों के लिए पेश करने के लिए नहीं बुलाया जा सकता है, जैसे कि यह एक आपराधिक मामले में एक भौतिक वस्तु हो। न्यायिक अधिकारी मूर्ति की दिव्यता को प्रभावित किए बिना या बड़ी संख्या में भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना उसका निरीक्षण करने के लिए किसी को तैनात कर सकते थे।
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