पिछले हफ्ते अंटार्कटिक और आर्कटिक दोनों ही जगह तापमान में अचानक ऐसा उछाल आया कि सारे रिकॉर्ड टूट गए। वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं कि अचानक यह वृद्धि क्यों हुई। बीती 19 मार्च को पूर्वी अंटार्कटिक में कुछ जगहों पर तापमान औसत से 40 डिग्री ज्यादा दर्ज किया गया। मौसम विज्ञानी इटिएने कापीकियां ने ट्वीट कर बताया कि समुद्र से 3,234 मीटर ऊंचाई पर स्थित कॉनकॉर्डिया मौसम स्टेशन पर -11.5 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ जो अब तक का सबसे ज्यादा है. इसी तरह अंटार्कटिक के वोस्तॉक स्टेशन पर तापमान 15 डिग्री से ज्यादा उछल गया जबकि मौसमी घटनाओं पर नजर रखने वाले मैक्सीमिलानो ने ट्वीट किया कि टेरा नोवा बेस पर तापमान सामान्य से 7 डिग्री ज्यादा था। यही हाल धरती के दूसरे सिरे पर भी था। आर्कटिक पर मार्च के औसत तापमान में 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
नॉर्वे और ग्रीनलैंड में भी गर्मी के नए प्रतिमान स्थापति हो रहे हैं। वैज्ञानिक कहते रहे हैं कि जल - वायु परिवर्तन का असर ऐसे अचानक उछाल के रूप में यदा-कदा दिखता रह सकता है लेकिन बीते हफ्ते अचानक ऐसा क्या हुआ कि धरती के दो सिरों पर एक ही वक्त तापमान एक साथ उछल गया? वैज्ञानिक इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं। अंटार्कटिक में वायुमंडलीय नदी वैज्ञानिक इस बात को लेकर संदेह जता रहे हैं कि दो सुदूर जगहों पर हुए एक जैसे उछाल के पीछे कोई एक ही वजह है। ऑस्ट्रेलिया के अंटार्कटिक कार्यक्रम में काम कर रहे वैज्ञानिक साइमन एलेग्जैंडर कहते हैं कि यह एक संयोग हो सकता है। ऑस्ट्रेलियाई समाचार प्रसारक एबीसी को दिए एक इंटरव्यू में एलेग्जैंडर ने कहा, "संभव है कि यह एक संयोग हो लेकिन वैज्ञानिकों को ध्यान पूर्व अध्ययन करके इस बात की पुष्टि करनी होगी कि यह एक संयोग ही था।"
हालांकि वैज्ञानिक इस बात की चेतावनी दे चुके हैं कि दोनों ही ध्रुवों का तापमान जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है लेकिन उन्होंने तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि होने की बात कही है। डॉ. एलेग्जैंडर बताते हैं कि इन घटनाओं पर ला निन्या और अन्य मौसमी घटनाओं का कितना प्रभाव है, यह जानने के लिए गहन अध्ययन की जरूरत होगी। इन अध्ययनों में महीनों और यहां तक कि सालों भी लग सकते हैं। इस बीच फरवरी में अंटार्कटिक में बर्फ का स्तर 1979 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है।
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