सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के धर्मांतरण पर सुनाए फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में कथित रूप से हिंदू धर्म से अन्य धर्मों में जबरन धर्मांतरण का मुद्दा उठाया गया था। कोर्ट ने कहा कि यह याचिका 'प्रचार हित' से अधिक कुछ नहीं है और इस तरह की दलीलें सद्भाव को बिगाड़ने का काम करती हैं।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि आप वास्तव में इस तरह की याचिकाओं से सामंजस्य बिगाड़ रहे हैं। पीठ ने कहा कि यह याचिका जनहित के बजाय प्रचार हित की अधिक है और इसे तुरंत खारिज कर दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के पिछले साल मार्च में एक जनहित याचिका पर दिए आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें केंद्र और तमिलनाडु राज्य सहित अन्य से ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों पर निगरानी के लिए बोर्ड स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि विशेष सरकारी वकील ने तमिलनाडु जबरन धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2002 की एक प्रति प्रस्तुत की है जिसमें बल के उपयोग से जबरन धर्म बदलने पर रोक लगाने का प्रावधान करता है। अदालत ने कहा कि हम आशा और विश्वास कर सकते हैं कि इस अधिनियम के प्रावधानों का ठीक से पालन होगा।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) में याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से उनकी जानकारी में आया है कि कुछ असामाजिक तत्व और देशद्रोही लोगों का जबरन धर्मांतरण करा रहे हैं। विशेष रूप से ईसाई धर्म को लेकर यह शिकायत मिल रही है। याचिकाकर्ता का कहना था कि भारत की एकता और संप्रभुता और स्थिरता को मजबूत करने के लिए सभी ईसाई मिशनरियों की जांच की जानी चाहिए। साथ ही उनकी आय की निगरानी की जानी चाहिए और उनकी गतिविधियों को राज्य व केंद्र सरकार की निगरानी में सख्ती से लाया जाना चाहिए।
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